Thursday, June 25, 2015

अध्याय 2.1 - रूचि प्रजापति

रूचि का उनकी पत्नि आकुति से एक यज्ञ नामक पुत्र  एवं दक्षिणा नामक पुत्री हुई।. उस समय तक स्वायम्भव मनु का कोई पुत्र नहीं हुआ था।  इस कारण उनहोंने  यज्ञ को गोद  ले लिया एवं अपने साथ ले गये।  मनु के यहाँ रहकर ही ये यज्ञ पले बढे एवं इनका विवाह होने तक इनके जन्मा-दाता रुचि के परिवार से इनकी कोई मुलाकात नहीं हो पायी। इनकी अपने परिवार से भेंट बड़े ही नाटकीय तरीके से हुई। इनकी जीवन गाथा कई कवियों का प्रेरणा स्तोत्र रही होगी।
       यज्ञ भगवन के बारह पुत्र हुए जिनका नाम था - तोष, प्रतोष संतोष , भद्र शान्ति इदस्पति इदमा, कवी विभु, स्व्न्हा , सुदेव एवं रोचन। ये बारह प्रथम मन्वन्तर के देवता बने एवं तुषित नाम से प्रसिद्द हुए। इन देवताओं के राजा का पद अर्थात इंद्र का पद स्वयं यज्ञ भगवान् ने स्वीकार किया। इसलिए कई जगह कहा जाता है  कि  भगवान् स्वयं ही प्रथम इंद्र बने। और वेदों में जो इंद्र का गुणगान हे , वो हो सकता हे की इन्ही प्रथम इंद्र का गुणगान हो , न की आधुनिक शक्र नामक इन्द्र का
रूचि +आकुति
तोष,

प्रतोष

संतोष

भद्र

शान्ति

इदस्पति

इदमा

कवी

विभु

स्व्न्हा

सुदेव

रोचन

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